नागपुर। केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि विधेयक को लेकर मचे घमासान के बीच गुरुवार को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे किसान विरोधी करार देते हुए केन्द्र सरकार पर जमकर हमला किया।
नागपुर में एक प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कहा कि केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों को और किसान संगठनों से बिना कोई चर्चा या सलाह किए बिना यह विधेयक लाया है। श्री बघेल ने कहा कि केन्द्र सरकार के इस फैसले का चौतरफा विरोध हो रहा है। इससे मंडी व्यवस्था पूरी तरह से ठप हो जाएगी। मंडियों में उपज बेचकर किसान खुश थे, लेकिन केन्द्र सरकार किसानों को खुश देखना ही नहीं चाहती।
उन्होंने कहा कि मंडियों में क्रेता-विक्रेताओं के मध्य होने वाले व्यापार मंडी सचिवों की निगरानी में होती थी, कोई विवाद होने पर मंडी सचिव इसे सुलझाता था। अब यदि विवाद होगा तो इसका निराकरण कराने किसान कहां जाएंगे? किसानों के साथ यदि धोखा होता है तो वे किससे गुहार लगाएंगे? नए नियमों के अनुसार मंडियों में लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि किसानों के पास आधार क्या होगा कि उसने अपनी उपज किसे और कितने में बेचा है? जबकि मंडियों में बकायदा किसानों का रिकार्ड होता है। मंडी के बाहर होने वाले इस व्यापार की निगरानी कौन करेगा? यह सीधे-सीधे मंडियों को समाप्त करने की साजिश है। मंडियां नहीं होगी तो मंडियों में कार्यरत हजारों-लाखों कर्मचारी भी बेरोजगार हो जाएंगे।
किसानों की उपज का यदि भुगतान नहीं होगा तो वह कहां जाएगा? यह किसानों को उनकी ही जमीन पर मजदूर बनाने की सोची-समझी साजिश है। सीएम श्री बघेल ने कहा कि केन्द्र सरकार ने अब तक राज्यों को जीएसटी की बकाया राशि नहीं दी है, राज्यों की हालात खराब होती जा रही है। श्री बघेल ने कहा कि कान्टे्रक्ट फार्मिंग का फार्मूला सीधे-सीधे किसानों को मजदूर बनाने का है। इस फार्मूले में किसान अपनी ही जमीन पर बंधवा मजदूर बनकर काम करेगा, क्या यह उचित है। उन्होंने कहा कि उपजों का एमपीएस भी निर्धारित नहीं किया गया है, ऐसे में निजी कंपनियां मनमानी करेंगी और अपने लाभ के अनुसार किसानों से उपज खरीदेंगी, यह क्या देश भर के किसानों के लिए उचित होगा?