अंडा बेहतर या दूध? मप्र सरकार के कदम से क्यों शुरू हुई ये बहस?

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मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार (Shivraj Singh Chouhan Government) का साफ रुख यही है कि आंगनवाड़ियों में मिड डे मील के तौर पर बच्चों को अंडा नहीं दिया जाएगा. बच्चों को पोषण (Nutrition) और सेहतमंद आहार देने के लिए अंडे के जवाब में मप्र दूध को मुकाबले के लिए उतार रहा है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब मप्र में इस तरह की बहस छिड़ी है. मप्र में अंडा बनाम दूध (Egg vs Milk) की इस दास्तान को सिरे से समझना अपने आप में दिलचस्प है कि किस तरह सरकार और स्वास्थ्य कार्यकर्ता (Health Activists) आमने सामने हैं.

पहले भी हो चुकी है ये जंग
जी हां, साल 2015 में भी चौहान की ही सरकार में आंगनवाड़ियों को साफ तौर पर हिदायत दी गई थी कि मिड डे मील में बच्चों को अंडा देने की हिमाकत न की जाए. लेकिन, साल 2018 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बनी तो उसने मिड डे मील के मेन्यू को बदलकर अंडे को तरजीह दी. कुछ ही समय बाद कांग्रेस सरकार गिरी और वापस भाजपा सरकार आई तो इसी साल अंडे को फिर बेदखल कर दिया गया.मप्र में कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए भाजपा से हाथ मिलाने वाले विधायकों में शामिल इमरती देवी ने हाल में कहा कि भाजपा जॉइन करने के बाद भी वो अपने पुराने बयान पर टिकेंगी और स्कूलों में बच्चों व अस्पतालों में गर्भवतियों के लिए अंडे की हिमायती रहेंगी. लेकिन, अंडे को अनिवार्य न करते हुए मर्ज़ी के आधार पर वितरण की बात उन्होंने कही. तबसे यह मुद्दा सियासत में बना हुआ है.

क्यों सरकार को हज़म नहीं हो रहा अंडा?
कमलनाथ सरकार ने जब अंडे को मेन्यू में शामिल किया था, तब विपक्ष में बैठी बीजेपी के विधायक गोपाल भार्गव ने कहा था कि ‘अंडा खाने से बच्चे आदमखोर बन जाएंगे’ और अंडा ‘वैसे भी हमारी उस संस्कृति का हिस्सा नहीं’ है, जो मांसाहार के खिलाफ है. मध्य प्रदेश में शाकाहार बनाम मांसाहार की यही बहस पहले भी हुई थी और इसलिए भाजपा सरकार के रहते कभी अंडे को मिड डे मील में जगह नहीं मिली.

क्यों है ‘मांसाहार’ पर इतना बवाल?
मप्र में 40% से ज़्यादा आबादी शाकाहारी मानी जाती है. अंडे को भोजन में शामिल करने का विरोध कई समुदायों से होता है, खासकर जैन समुदाय इसका सख्त विरोधी है, जिसकी आबादी प्रदेश में अच्छी खासी है. सोशल मीडिया पर जैन समुदाय के नेता यहां तक कह चुके हैं कि वही लोग डबरा से उम्मीदवार इमरती देवी को वोट दें, जो बच्चों को अंडे खिलाने के शौकीन हों. जातिगत वोट बैंक की राजनीति चूंकि मप्र में हावी रही है इसलिए सरकार अंडे को जोखिम ही समझती है.

क्या है दूध और अंडे का फंडा?
अस्ल में, मप्र उस सूची में अव्वल राज्य है, जहां बच्चों में कुपोषण सबसे ज़्यादा है. नेशनल पब्लिक रेडियो की 2015 की रिपोर्ट में खाद्य अधिकार कार्यकर्ता सचिन जैन ने कहा था कि कुपोषित बच्चों को प्रोटीन और फैट की डाइट के लिए अंडा आसान और कारगर आहार है. इसके बाद से बहस शुरू हुई और मध्य प्रदेश समेत कुछ और राज्यों में चल रही है.

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