पटना (आससे)। भगवान भास्कर की आराधना में पूरी राजधानी भक्तिमय हो गई है। गुरुवार को खरना सम्पन्न हो गया और शुक्रवार की अस्ताचलगामी सूर्य को प्रथम अर्ध्य दिया जाएगा जबकि शनिवार को उदीयमान सूर्य को अर्ध्य के साथ छठ महापर्व सम्पन्न होगा। छठ पर्व को लेकर जहां बाजारों में भीड़भाड़ है वहीं घाटों पर प्रशासन ने कड़ी चौकसी की व्यवस्था की है।
धर्माचार्यों और चिकित्सकों ने छठ महापर्व में खरना के प्रसाद का बड़ा महत्व बताया है। इसलिए धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने वालों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस वजह से इसे व्रती भगवान को अर्पित कर खुद भी ग्रहण करते हैं और वितरित करते हैं।
खरना के प्रसाद के रूप में व्रती गाय के शुद्ध दूध और गुड़ में पका हुआ अरवा चावल की खीर और गेहूं के आटे की रोटी ग्रहण करते हैं। इसे पकाने के दौरान भी आम की लकड़ी और गोबर के उपले (गोइठा) जैसी प्राकृतिक चीजों का उपयोग करते हैं। आचार्य राजनाथ झा बताते हैं कि खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है जो अगले 36 घंटे तक होता है।
यह प्रसाद व्रतियों में उदारता, संयम, संकल्पों की दृढ़ता, तेजस्विता जैसे सदगुणों के साथ साथ ऊर्जा का संचार करता है। आचार्य झा बताते हैं कि कोई भी बड़ा व्रत धारण करने से पहले व्रतियों के एकभुक्त की परंपरा रही है। एकभुक्त यानी एक समय प्रसाद ग्रहण।
तीज, जिवितपुत्रिका जैसे व्रतों में भी ऐसा होता है। एकभुक्त होने के बाद 24 घंटे का उपवास शुरू होता है। छठ में इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है। आचार्य राजनाथ झा कहते हैं कि भगवान भास्कर को खीर अतिशय पसंद है। चूकि वे चराचर जगत के नाथ हैं और वे अपने दिव्य प्रकाश से ब्रहमांड को प्रकाशित और ऊर्जान्वित करते हैं। खरना में जो कुछ भी सेवन होता है वह भगवान भास्कर के प्रकाश से ही प्राप्त होता है।