आस्था का प्रतीक है उदाकिशुनगंज का सार्वजनिक दुर्गा मंदिर

ढाई सौ साल पुराना है दुर्गा मंदिर का इतिहास, मनोकामना शक्तिपीठ के रूप में है ख्याति प्राप्त

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उदाकिशुनगंज (मधेपुरा)(संसु)। उदाकिशुनगंज प्रखंड मुख्यालय स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह मंदिर धार्मिक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व को भी दर्शाता है। अध्यात्मिक की स्वर्णिम छटा बिखेरती सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है। कि करीब ढाई सौ वर्ष पूर्व से हीं यहां मां दुर्गा की पूजा अर्चना होती आ रही है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में पहुंचने वाले हर भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। ऐसी मान्यता है कि आज तक यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता।

बताया जाता है कि जिस जगह माता का मंदिर है वहां कभी काश का जंगल हुआ करता था। इस होकर कोसी की धारा बहती थी। सन 1800 ई के बाद की बात है कि कलश के रूप में मिले तत्व के कारण यहां पर माता का वास हुआ। लोग उस समय से पूजा करते आ रहें है। कुछ बुजुर्गों का कहना है कि करीब ढाई सौ वर्ष पूर्व 18वीं शताब्दी में चंदेल राजपूत सरदार उदय सिंह और किशन सिंह के प्रयास से इस स्थान पर मां दुर्गा की पूजा शुरु की गई थी।

कोसी की धारा बदलने के बाद आनंदपुरा गांव के हजार मणी मिश्र ने दुर्गा मंदिर की स्थापना हेतु अपनी जमीन दान में दी थी और उन्ही के प्रयास से श्रद्धालुओं के लिए एक कुएं का निर्माण कराया गया था जो आज भी मौजूद है। कभी झोपड़ी नुमा घर में विरजमान माता के वास के लिए अब बड़ा और आकर्षक व भव्य मंदिर का निर्माण हो गया है। मंदिर की सुंदरता और विधि व्यवस्था पर किसी तरह का कोई चूक ना हो इसके लिए एक कमिटी बनाया गया है और कमेटी के सदस्यों द्वारा ईमानदारी पूर्वक मां दुर्गा मंदिर के प्रांगण में विधि व्यवस्था को कायम रखने का प्रयास के लिए सतत समर्पित रहते हैं।

अंग्रेजी हुकूमत के समय में भी यहा धूमधाम से पूजा हुआ करती थी। सदियों से यहा मेला का भी आयोजन किया जाता है। बताया जाता है कि पुराने समय में यहा अंग्रेज का कचहरी चला करता था। वैसे इस मंदिर में प्रतिदिन पूजा और अर्चना की जाती है। किंतु शारदीय नवरात्र में इसका महत्व काफी बढ़ जाता है। सुबह शाम आरती व पूजा होती है। जिसमें महिला व पुरूष भक्त बढ़ चढ़ कर भाग लेते है।

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