पटना: 3.22 करोड़ बच्चे नहीं जाते स्कूल

ड्रॉपआउट रोकने के लिए स्कूलों में होगी बच्चों की ट्रैकिंग, खुलेंगे वैकल्पिक और नवीन शिक्षा केंद्र भी

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(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। देश में छह से 17 वर्ष के बीच की उम्र के तीन करोड़ 22 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। यह खुलासा एनएसएसओ (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय) के 75वें राउंड हाऊसहोल्ड सर्वे में हुआ। शिक्षा प्रणाली से बाहर हुए ऐसे बच्चों को स्कूली शिक्षा की मुख्य धारा में वापस लाने की योजना नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में है।

हालांकि, सर्व शिक्षा अभियान (अब समग्र शिक्षा) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसी पहल के माध्यम से देश ने हाल के वर्षों में प्राथमिक शिक्षा में लगभग सभी बच्चों का नामांकन प्राप्त करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। लेकिन, बाद के आंकड़े बच्चों के स्कूली व्यवस्था में ठहराव संबंधी गंभीर मुद्दों की ओर इशारा करते हैं। कक्षा छठी से आठवीं का जीईआर (सकल नामांकन अनुपात) 90.9 प्रतिशत है, जबकि कक्षा नौ-10 और 11-12 के लिए यह क्रमश: 79.3 प्रतिशत और 56.5 प्रतिशत है।

यह आंकड़े यह दर्शाते हैं कि किस प्रकार कक्षा पांच और विशेष रूप से कक्षा आठ के बाद नामांकित छात्रों का एक महत्वपूर्ण अनुपात शिक्षा प्रणाली से बाहर हो जाता है। ऐसे बच्चों को यथासंभव पुन: शिक्षा प्रणाली में शीघ्र वापस लाने के लिए वर्ष 2030 तक प्री स्कूल से माध्यमिक स्तर में 100 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ आगे बढऩे की आवश्यकता नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जताते हुए कहा गया है कि भविष्य के छात्रों का ड्रॉपआउट दर भी कम करना होगा।

इसके तहत पूर्व प्राथमिक से 12वीं कक्षा तक की शिक्षा (व्यावसायिक शिक्षा) सहित देश के सभी बच्चों को सार्वभौमिक पहुंच और अवसर प्रदान करने के लिए एक ठोस राष्ट्रीय प्रयास किया जायेगा।  इसके लिए दो पहल की जायेंगी, जिससे बच्चों का विद्यालय में वापसी और आगे के बच्चों को ड्रॉपआउट होने से रोका जा सके।

पहला प्रभावी और पर्याप्त बुनियादी ढांचा होगा, ताकि सभी छात्रों को इसके माध्यम से प्री-प्राइमरी स्कूल से 12वीं कक्षा तक सभी स्तरों पर सुरक्षित और आकर्षक स्कूली शिक्षा प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त प्रत्येक स्तर पर नियमित प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध कराने के अलावा विशेष देखभाल की व्यवस्था होगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसी स्कूल में अवस्थापना की कमी न हो।

सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता फिर से स्थापित की जायेगी और ऐसा मौजूदा स्कूलों का उन्नयन और विस्तार करके जहां स्कूल नहीं हैं, वहां अतिरिक्त गुणवत्ता स्कूल बना कर और छात्रावासों विशेष कर बालिका छात्रावासों तक सुरक्षित और व्यावहारिक पहुंच प्रदान कर किया जा सकेगा, ताकि सभी बच्चों को अच्छे स्कूल में जाने और समुचित स्तर तक पढऩे का अवसर मिले।

प्रवासी मजदूरों के बच्चों और विविध परिस्थितियों में स्कूल छोडऩे वाले बच्चों को मुख्य धारा शिक्षा में वापस लाने के लिए सिविल समाज के सहयोग  से वैकल्पिक और नवीन शिक्षा केंद्र स्थापित किये जायेंगे।

दूसरा यह कि स्कूलों में सभी बच्चों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उनकी ट्रैकिंग करनी होगी। उनके सीखने के स्तर और उनकी उपस्थिति पर नजर रखनी होगी। इस बात ध्यान होगा कि ड्रॉपआउट से लौटने वाले बच्चे पीछे न रह जायें।

फाउंडेशन स्टेज से लेकर 12वीं कक्षा तक की स्कूली शिक्षा के जरिये 18 वर्ष की आयु तक सभी बच्चों को समान गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए बुनियादी सुविधा की व्यवस्था होगी। प्रशिक्षित शिक्षकों एवं कर्मियों की भरती होगी।

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