जहानाबाद: मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ बागवानी में जुटे दो भाई लिख रहे विकास की नई इबारत

पिता के साथ मछली पालन और बागवानी कर किसानों के लिए बने प्रेरणास्रोत

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जहानाबाद। सदर प्रखंड के गोनवां निवासी दो भाई मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ पिता के साथ मछली पालन और बागवानी से जुड़कर विकास की नई इबारत लिख रहे हैं। अब उनकी मेहनत ने रंग दिखना भी शुरू कर दिया है और वह दिन दूर नहीं है, जब पिता-पुत्र की जोड़ी जिले में मिसाल कायम करेगी। पुणे में मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ संतोष अपने पिता के साथ मछली पालन और बागवानी में जुट गए हैं।

वहीं, मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने वाले एक अन्य भाई मंतोष पूंजी के साथ-साथ छुट्टी के दिनों में शारीरिक तौर पर भी बागवानी को हरा-भरा रखने में मदद करते हैं। पिता-पुत्र की लगन और नियोजित तौर-तरीका इनदिनों पूरे जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है। गांव के आसपास के लोग पिता-पुत्र से मार्गदर्शन लेने पहुंच रहे हैं।

दरअसल, जिले के सदर प्रखंड के गोंनवां गांव के गोपाल शर्मा नौकरी और नेतागिरी से उबने के बाद अपने दो पुत्रों की मदद से मछली पालन और बागवानी कर अपनी जिंदगी जी रहे हैं। वहीं, उनके नियोजित तौर तरीकों से अन्य ग्रामीणों को भी गांव में रहकर कुछ खास करने की प्रेरणा मिल रही है।

गोंनवा गांव के दक्षिणी छोर पर पांच एकड़ में लगी उनकी बागवानी के बीच मछली पालन के लिए खोदा गया तालाब लोगों को खूब भा रहा है। उनकी प्लानिंग देखने आसपास से लोग उनके गांव पहुंच रहे हैं और उनसे मार्गदर्शन ले रहे हैं। दरअसल, शर्मा ने पहले बाजार समिति में सरकारी नौकरी की। वहां से निकले तो ठेकेदारी में हाथ आजमाया। फिर कई तरह के व्यवसाय में भी अपने को फिट करने की कोशिश की, जब उनका मन नहीं भरा तो वे अपनी एक्सट्रोवर्ट छवि के सहारे नेतागिरी में उतर गए।

नेतागिरी में उन्हें थोड़ी सफलता मिली और वे जहानाबाद भाग दो से जिला पार्षद भी बन गए। फिर विधायक बनने के लिए भी कई दफे भाग्य आजमाया, लेकिन विधायक बनते बनते रह गए। आखिरकार अब वे पूरी तरह से किसानी में उतर गए हैं। उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के अपनी पांच एकड़ भूमि की घेराबंदी कर डेढ़ बीघा में तालाब खुदवाई है और शेष बचे जमीन में ढाई हजार पौधे लगाए हैं। बगीचा के बीच में गोशाला भी है।

इनके तालाब में रेहू, कतला, जाशर जैसी मछलियां पाली गईं हैं। शर्मा को पशु पक्षियों से खूब प्रेम है। वह पूरे दिन उन्हें दाना-पानी और दवा देने मे जुटे रहते हैं। इधर, एमबीए की योग्यता हासिल करने वाले उनके दो पुत्र संतोष और मंतोष भी उनकी मदद में जुटे रहते हैं। संतोष तो नौकरी छोड़कर पिता के साथ मछली पालन और बागवानी में जुट गए हैं। जबकि, मंतोष छुट्टियों में पिता की मदद करते हैं। बागवानी के हरा-भरा रखने का श्रेय पिता-पुत्र एक दूसरे को देते हैं। बहरहाल जिस सिद्दत के साथ पिता-पुत्र की जोड़ी अपने मिशन में जुटी है, वह न सिर्फ अनुकरणीय बल्कि प्रेरणादायी भी है।

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