बिग बास्केटके यूजर्सका डेटा चोरी

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-आज समाचार सेवा-

नयी दिल्ली (एजेंसी)। एक बार फिर ऑनलाइन यूजर्स का डेटा लीक होने की खबरें सामने आयी हैं। इस बार ग्रॉसरी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म बिग बास्केट के 2 करोड़ यूजर्स का डेटा लीक हुआ है। साइबर इंटेलीजेंस कंपनी काइब्ले के मुताबिक, हैकर ने इस डेटा को 40,000 डॉलर (करीब 29.5 लाख रुपये) में बेचने के लिए डार्क वेबसाइट पर डाल दिया है। डेटा लीक होने के बाद कंपनी ने बेंगलुरु में साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज करायी है। काइब्ले ने ब्लॉग में लिखा कि हमारी रिसर्च टीम ने अपनी रूटीन वेब मॉनीटरिंग में पाया कि साइबर क्राइम मार्केट में बिग बास्केट के डेटा को 40,000 डॉलर में बेचा जा रहा है, इस डेटा बेस की फाइल करीब 15 जीबी की है, जिसमें करीब 2 करोड़ यूजर्स का डेटा हैं। काइब्ले रिपोर्ट के मुताबिक, लीक डेटा में यूजर्स का नाम, ई-मेल, पासवर्ड हैश, मोबाइल नंबर, एड्रेस, डेट ऑफ बर्थ, लोकेशन यहां तक कि लॉग-इन का आईपी एड्रेस भी दिया है। काइब्ले ने डेटा में पासवर्ड का जिक्र किया है, जिसका मतलब है वन टाइम पासवर्ड जो एसएमएस के जरिए मिलता है, जब यूजर लॉग-इन करता है और ये हर बार बदलता रहता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डेटा की चोरी 30 अक्तूबर, 2020 को हुई। इसके बारे में बिग बास्केट के मैनेजमेंट को जानकारी दे दी गयी है। इस मामले पर बिग बास्केट ने कहा,कुछ दिन पहले हमें बड़ी डेटा चोरी के बारे में पता चला है। हम साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स के साथ मिलकर पता कर रहे हैं कि ये कितना बड़ा है और इसमें कितनी सच्चाई है। साथ ही, इसे तत्काल रोकने के रास्ते भी तलाश रहे हैं। हमने साइबर सेल बेंगलुरू में शिकायत भी दर्ज कराई है। हम दोषियों को पकड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। कस्टमर्स के डेटा की प्राइवेसी और सिक्योरिटी हमारी प्राथमिकता है। हम उनके फाइनेंशियल डेटा जैसे क्रेडिट कार्ड नंबर वगैरह स्टोर करके नहीं रखते हैं और हमें पूरा भरोसा है कि उनका ऐसा डेटा पूरी तरह से सेफ है। बिग बास्केट में चीन की कंपनी अलीबाबा, मिराय एसेट-नेवर एशिया ग्रोथ फंड और ब्रिटिश सरकार के सीडीसी ग्रुप ने भी फंडिंग की है। हाल ही में बिग बास्केट कुछ और निवेशकों के साथ फंडिंग को लेकर बातचीत कर रही थी। बिग बास्केट 350-400 मिलियन डॉलर की पूंजी जुटाने की कोशिशों में लगी है। इसके लिए कंपनी सिंगापुर सरकार के टीमासेक, अमेरिका बेस्ड फिडेलिटी और टाइबोर्न कैपिटल के साथ फंडिंग की बात कर रही है। इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइट हैं जो ज्यादातर इस्तेमाल होने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजन और सामान्य ब्राउजिंग के दायरे में नहीं आती। इन्हें डार्क नेट या डीप नेट कहा जाता है।

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