चीन के साथ अर्थयुद्ध में कहां खड़ा है भारत

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-संजय राय-

नयी दिल्ली, 20 जून। पहले कोरोना वायरस और फिर लद्दाख सीमा पर भारत-चीन की सेनाओं के बीच टकराव। इन दोनों वजहों से देश में एक बार फिर चीन का विरोध शुरू हो गया है। सोशल मीडिया पर लगातार बायकॉट चाइनीज प्रोडक्ट जैसे हैशटैग ट्रेंड हो रहे हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2019 से लेकर फरवरी 2020 के बीच भारत-चीन के बीच 5 लाख 50 हजार करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। इसमें से भारत ने तो सिर्फ 1.09 लाख करोड़ का सामान चीन को बेचा, लेकिन इससे चार गुना यानी 4.40 लाख करोड़ रुपए का सामान चीन से खरीदा। अमेरिका के बाद चीन हमारा दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी देश है। ये आंकड़े मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के हैं।
आवश्यक दवाइयों के लिए 65% से ज्यादा कच्चा माल चीन से आता है। हाल ही में लोकसभा में केमिकल मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने बताया था कि भारत जरूरी दवाइयों को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है। उनके जवाब के मुताबिक, 2016-17 से लेकर 2018-19 तक दवाइयों के लिए जितना कच्चा माल दूसरे देशों से भारत ने खरीदा था, उसमें से 65% चीन से आया था।
2018-19 में भारत ने कुल 3.56 अरब डॉलर यानी 26 हजार 700 करोड़ रुपए का कच्चा माल खरीदा था। इसमें से 2.40 अरब डॉलर यानी 18 हजार करोड़ रुपए का माल चीन से आया था।
6 साल में चीन ने करीब 13 हजार करोड़ रुपए निवेश किए। वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में एफडीआई के जरिए सबसे ज्यादा निवेश सिंगापुर से आता है। सिंगापुर ने पिछले तीन साल में 2.94 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश किया है। जबकि, भारत में सबसे ज्यादा निवेश करने वाले देशों में चीन 18वें नंबर पर है। चीन ने 2019-20 में 1 हजार 157 करोड़ रुपए इन्वेस्ट किए। वहीं, 2014-15 से लेकर 2019-20 के बीच 6 सालों में चीन से 12 हजार 916 करोड़ रुपए का निवेश आया।

स्टार्टअप में भी चीनी कंपनियों की हिस्सेदारीचीन का एफडीआई भले ही कम हो, लेकिन वहां की कई कंपनियों की हिस्सेदारी भारत के स्टार्टअप्स में है। थिंक टैंक गेटवे हाउस की रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिकॉर्न क्लब में शामिल भारत के 30 में से 18 स्टार्टअप में चीन का पैसा लगा है। यूनिकॉर्न क्लब में उन्हें शामिल किया जाता है, जिसकी नेटवर्थ 1 अरब डॉलर से ज्यादा होती है।
चीनी कंपनियों के भारतीय स्टार्टअप में इन्वेस्ट करने की तीन वजह हैं। पहली- देश की कोई बड़ी कंपनी या ग्रुप स्टार्टअप में इन्वेस्ट नहीं करते। दूसरा- जब कोई स्टार्टअप घाटे में जाता है, तो चीनी कंपनियां उसमें हिस्सेदारी खरीद लेती हैं और उसे सपोर्ट करती हैं।गेटवे हाउस के मुताबिक, चीन की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा, टिकटॉक बनाने वाली बाइटडांस और टेक कंपनी टेन्सेंट ही भारत के 92 स्टार्टअप को फंडिंग करती हैं। इनमें पेटीएम, फ्लिपकार्ट, बायजू, ओला और ओयो जैसे स्टार्टअप भी शामिल हैं।
देश के टॉप-5 स्मार्टफोन ब्रांड में 4 चीन केरिसर्च फर्म काउंटरप्वाइंट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 की पहली तिमाही यानी जनवरी से मार्च के बीच भारतीय स्मार्टफोन मार्केट में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 70% से भी ज्यादा है। भारत का स्मार्टफोन मार्केट करीब 2 लाख करोड़ रुपए का है। देश के टॉप-5 स्मार्टफोन ब्रांड में से 4 चीन के हैं। सबसे ज्यादा 30% मार्केट शेयर श्याओमी का है। दूसरे नंबर पर 17% मार्केट शेयर के साथ वीवो है। टॉप-5 में सिर्फ सैमसंग ही है, जो दक्षिण कोरियाई कंपनी है। सैमसंग का मार्कट शेयर भारत में 16% है।
भारतीय मार्केट में न सिर्फ चीनी कंपनियों के स्मार्टफोन, बल्कि चीनी ऐप्स भी काफी पॉपुलर हैं। एक अनुमान के मुताबिक, भारतीय ऐप मार्केट में 40% तक हिस्सा सिर्फ चाइनीज ऐप्स का है। चीन की कंपनियां सस्ते स्मार्टफोन भारत में लॉन्च करती हैं और भारतीयों को यही पसंद आते हैं। मार्केट रिसर्च फर्म टेकआर्क के मुताबिक, दिसंबर 2019 तक भारत में 50 करोड़ से ज्यादा लोग स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे थे। ज्यादा स्मार्टफोन तो ज्यादा ऐप्स भी डाउनलोड होते हैं। टिकटॉक, जिसको कई बार बैन करने की मांग उठती रही है, उसे 12 करोड़ से ज्यादा भारतीय चलाते हैं। कैमस्कैनर ऐप के भी भारत में 10 करोड़ से ज्यादा यूजर हैं।
चीन पर हमारी निर्भरता के कई उदाहरण हैं। इसी साल फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की एक रिपोर्ट आई थी, उसके मुताबिक हमारी गाड़ियों में लगने वाले 27% ऑटो पार्ट्स चीन से आते हैं। 45% इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स चीन से आते हैं। जबकि, टीवी, रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन और एसी बनाने में यूज होने वाले 70% कंपोनेंट भी चीन से ही आते हैं। इतना ही नहीं, हर साल देश में करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए का सिंथेटिक धागा, ढाई हजार करोड़ रुपए का सिंथेटिक कपड़ा और करीब एक हजार करोड़ रुपए के बटन, जिपर, हैंगर और निडिल जैसे छोटे सामान भी हम चीन से खरीदते हैं।
उक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भारत को चीन के साथ सीमा पर नहीं, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर काफी मेहनत करनी पड़ेगी। इसमें सरकारी नीतियों की बड़ी भूमिका रहने वाली है। यह लड़ाई पूरे देश की जनता को लड़नी है, इसमें कोई दो राय नहीं है। जरूरत है शीर्ष नेतृत्व इस दिशा में ठोस व समग्र कार्यनीति बनाए और सुनिश्चित करे कि उसपर अमल हो।
समाप्त।

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