सपही बरवा में नौवां वार्षिक आयोजन: क्या होगा खास
सपही बरवा में इस साल भी श्रद्धा और सामुदायिक भागीदारी साथ-साथ दिख रही है। गांव का नौवां वार्षिक राधा अष्टमी उत्सव शुरू हो गया है। आयोजकों के मुताबिक कार्यक्रम की धुरी सात दिवसीय भागवत कथा रहेगी, जबकि 6 सितंबर को सामूहिक भंडारा होगा। यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से बिना रुके चल रहा है, और इस बार भी लोगों की भागीदारी पहले जैसी ही ऊर्जावान दिख रही है।
राधा अष्टमी वैष्णव परंपरा का बड़ा पर्व है, जो श्रीराधा के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार यह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को पड़ती है। 2025 में तिथि 31 अगस्त को है, इसलिए स्थानीय आयोजनों का क्रम इसी हफ्ते के भीतर जारी रहेगा। सुबह मंगला आरती, दोपहर कथा, शाम को आरती और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां—गांव की धड़कन इन रीतियों में साफ सुनाई देती है।
सात दिवसीय भागवत कथा की रूपरेखा आमतौर पर श्रीकृष्ण लीलाओं, भक्ति और धर्म के मूल संदेश पर केंद्रित रहती है। कथा वाचक प्रतिदिन अलग प्रसंग उठाते हैं—बाल्य लीलाएं, वृंदावन की कथाएं, गोवर्धन पूजा, रासपंचाध्यायी और भक्ति के नवरस। बीच-बीच में भजन-संकीर्तन होता है, जिससे श्रोताओं की सहभागिता बनी रहती है। आखिरी दिन सामूहिक प्रार्थना के बाद प्रसाद वितरण और भंडारे के साथ कार्यक्रम का समापन माना जाता है।
भंडारा 6 सितंबर को प्रस्तावित है और यह सबके लिए खुला रहता है। आम तौर पर लोग परिवार के साथ पहुंचते हैं, प्रसाद ग्रहण करते हैं और सेवा में हाथ बंटाते हैं। स्थानीय महिलाएं प्रसाद तैयारी में अहम भूमिका निभाती हैं, जबकि युवा स्वयंसेवक कतार, पानी और बैठने की व्यवस्था संभालते हैं। कई परिवार अपने पूर्वजों की स्मृति या मनोकामना पूरी होने पर अन्नदान की सेवा भी लेते हैं।
राधा अष्टमी उपवास-पूजा का दिन भी है। श्रद्धालु सुबह स्नान और संकल्प के बाद श्रीराधा-कृष्ण विग्रह का दुग्धाभिषेक, पुष्प अर्चन और आरती करते हैं। कुछ लोग निर्जल, कुछ फलाहार करते हैं। शाम को कथा और सामूहिक आरती के साथ व्रत खोला जाता है। बरसाना और वृंदावन जैसे बड़े तीर्थों में इस दिन विशेष झांकियां निकाली जाती हैं; छोटे स्थानों पर भी इसी भाव के साथ सादगी से उत्सव होता है।
समुदाय, परंपरा और व्यवस्थाएं
गांव के ऐसे आयोजनों की खूबी यही है कि हर व्यक्ति किसी न किसी जिम्मेदारी में जुड़ जाता है। कोई पंडाल और साउंड का ख्याल रखता है, कोई जलपान, तो कोई सफाई और सुरक्षा में खड़ा दिखता है। आयोजन समिति ने पंडाल में छाया, पीने के पानी, प्राथमिक उपचार और वरिष्ठ नागरिकों के बैठने जैसी ज़रूरतों पर ध्यान देने की बात कही है। बारिश की संभावना को देखते हुए टेंट और फर्श की अतिरिक्त परतें भी तैयार रखी जाती हैं, ताकि भीड़ को दिक्कत न हो।
भीड़ प्रबंधन के लिए प्रवेश और निकास मार्ग अलग रखने, वाहन पार्किंग गांव के किनारे करने और मुख्य स्थल के पास सिर्फ पैदल आवाजाही की अपील की गई है। कचरा प्रबंधन के लिए सूखा-गीला कचरा अलग रखने की व्यवस्था बनती दिख रही है, जिससे कार्यक्रम के बाद मैदान जल्दी साफ हो सके। दान-पत्र और घोषणा-पट्ट लगाकर खर्च का हिसाब सार्वजनिक करने की पहल भी समुदाय का भरोसा बढ़ाती है।
ऐसे उत्सव स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति देते हैं। फूल, फल, दूध और अनाज की मांग बढ़ती है, अस्थायी स्टॉल लगाने वालों की कमाई होती है, और आस-पास की दुकानों में रौनक रहती है। कई स्वयं सहायता समूह (SHG) महिलाओं के हाथों से बने पापड़, बड़ियां, अचार और हस्तशिल्प बेचते हैं—यह छोटी कोशिशें मिलकर बड़े असर छोड़ती हैं।
कथा सुनने वालों के लिए कुछ सरल सुझाव भी मददगार रहते हैं:
- पंडाल में समय से पहुंचे, मोबाइल रिंगटोन बंद रखें और बच्चों पर हल्की निगरानी रखें।
- धूप-बारिश की स्थिति में छाता या हल्का दुपट्टा साथ रखें; पानी की बोतल रीफिल काउंटर से भरें।
- दान देने से पहले रसीद लें; स्वयंसेवकों के निर्देशों का पालन करें।
- भंडारे में कतार और स्वच्छता का ध्यान रखें, अनावश्यक भीड़ न बनाएं।
पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि धार्मिक कार्यक्रमों में लोग केवल दर्शक बनकर नहीं, बल्कि सहभागी बनकर आते हैं—सेवा, सफाई, व्यवस्था और दान में आगे रहते हैं। सपही बरवा के इस आयोजन में भी वही भाव दिख रहा है। जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ेगी, गांव के घर-आंगन में भजन की धुनें और आरती की आंच और तेज होगी। 6 सितंबर के भंडारे तक समुदाय का यह साथ इस उत्सव को यादगार बना देगा।