राष्ट्रभक्त साथियों राष्ट्रीय गीत ‘वंदेमातरम्’ के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी का हमारे देश के उन महान् साहित्यकारों में सर्वश्रेष्ठ स्थान है, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समूचे भारतवर्ष में स्वतन्त्रता एवं जागृति का ऐसा मन्त्र फूंका कि सारे भारतवासी वंदेमातरम् ! वंदेमातरम ! के जयघोष के साथ सर्वस्व बलिदान करने हेतु तैयार हो उठे और देश ने आज़ादी प्राप्त की। बंकिम चन्द्र चटर्जी जी ने वन्देमातरम् के माध्यम से राष्ट्रीयता के जो जागृति भरे संस्कार परतंत्र भारतीयों को दिये, उसके लिए भारतवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे। वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् !
📝 बंकिम चंद्र चटर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना के कंठालपाड़ा, नैहाटी में एक परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। मेदिनीपुर में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद बंकिम जी ने हुगली के मोहसीन कॉलेज में दाखिला लिया। वर्ष 1856 में उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. (आर्ट्स) की परीक्षा पास की। बाद में वे कलकत्ता यूनिवर्सिटी से विधि में परीक्षा उत्तीर्ण की। कोलकाता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होने वाले पहले भारतीय थे। सरकारी नौकरी में रहते हुए उन्होंने सन् 1857 की क्रांति देखी थी। बंकिम जी बंगला के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। उनकी लेखनी से बंगला साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी अपकृत हुई है। वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं। इन्होंने वर्ष 1865 में अपना पहला उपन्यास ‘दुर्गेश नन्दिनी’ लिखा। वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् !
📝 बंकिम जी की शिक्षा बंगला के साथ साथ संस्कृति व अंग्रेज़ी में भी हुई। बचपन से ही उनकी रुचि संस्कृत के प्रति थी। अंग्रेजी के प्रति उनकी रुचि तब समाप्त हो गयी, जब उनके अंग्रेजी अध्यापक ने उन्हें बुरी तरह से डांटा था । सन् 1858 में कॉलेज की परीक्षा पूर्ण कर ली । पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने सन् 1858 में ही डिप्टी मजिस्ट्रेट का पदभार संभाला आजीविका के लिए उन्होंने सरकारी सेवा की, परन्तु राष्ट्रीयता और स्वभाषा प्रेम उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था। युवावस्था में उन्होंने अपने एक मित्र का अंग्रेज़ी में लिखा हुआ पत्र बिना पढ़े ही इस टिप्पणी के साथ लौटा दिया था कि, “अंग्रेज़ी न तो तुम्हारी मातृभाषा है और न ही मेरी”। सरकारी सेवा में रहते हुए भी वे कभी अंग्रेज़ों से दबे नहीं। बंकिम जी ने साहित्य के क्षेत्र में कुछ कविताएँ लिखकर प्रवेश किया। उस समय बंगला में गद्य या उपन्यास कहानी की रचनाएँ कम लिखी जाती थीं। बंकिम ने इस दिशा में पथ-प्रदर्शक का काम किया। 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘दुर्गेश नंदिनी’ नाम का उपन्यास लिखा। इस ऐतिहासिक उपन्यास से ही साहित्य में उनकी धाक जम गई। फिर उन्होंने ‘बंग दर्शन’ नामक साहित्यिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। टैगोर जी ‘बंग दर्शन’ में लिखकर ही साहित्य के क्षेत्र में आए। रबीन्द्रनाथ ठाकुर जी बंकिम चंद्र चटर्जी को अपना गुरु मानते थे। उनका कहना था कि, ‘बंकिम बंगला लेखकों के गुरु और बंगला पाठकों के मित्र हैं’। 🇮🇳 वंदेमातरम् !
📝 बंकिम जी के दूसरे उपन्यास ‘कपाल कुण्डली’, ‘मृणालिनी’, ‘विषवृक्ष’, ‘कृष्णकांत का वसीयत नामा’, ‘रजनी’, ‘चन्द्रशेखर’ आदि प्रकाशित हुए। राष्ट्रीय दृष्टि से ‘आनंदमठ ‘ उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी में सर्वप्रथम ‘वन्दे मातरम्’ गीत प्रकाशित हुआ था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। बंकिम के दिए ‘वन्दे मातरम्’ मंत्र ने देश के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया।राष्ट्रीय गीत ‘वन्देमातरम्’ के रचयिता बंकिम जी का नाम इतिहास में युगों-युगों तक अमर रहेगा क्योंकि यह गीत उनकी एक ऐसी कृति है जो आज भी प्रत्येक भारतीय के हृदय को आन्दोलित करने की क्षमता रखती है। कहा जाता है कि यह गीत उन्होंने सियालदह से नैहाटी आते वक्त ट्रेन में ही लिखी थी। यह गीत 07/11/1875 (रविवार) को पूरा हुआ। आधुनिक बंगला साहित्य के राष्ट्रीयता के जनक इस नायक का 08/04/1894 को देहान्त हो गया।
राकेश कुमार
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वंदेमातरम् !
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जय मातृभूमि !
राकेश कुमार (शिक्षक’ दिल्ली)
संस्थापक, मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477